महोब्बत हो या इबादत…
जो भी है तुमसे ही हैं❣️
नाराज़गी या शरारत…
जो भी है तुमसे ही है❣️
इस दिल पर हुकुमत…
बस एक तुम्हारी ही है❣️
इस चहेरे की मुस्कुराहट..
जो भी है तुमसे ही है❣️
मेरी रूह की राहत…
जो भी है तुमसे ही हैं❣️ जो भी है बस तुमसे ही है
मैं उसे
मैं उसे सुनता हूँ
वो मुझे सुनता है
हम बातें कहाँ करते है
इश्क़ का अंदाज भी कितना गजब है
ख्याल के बाद ख्वाब पे नजर है.. ❤
दिल तक
दिल तक दिल की दस्तक, पहुंचने दो मेरे यार
ये बोझ से जिन्दगी थोड़ी खुशी मिलने दो यारो
गुनाह
ये सच है गुनाह कर ही नहीं सकता ज़हन कोई
अगर ख्यालों में अगर हो सदा जिंदा हो बहन कोई
लिट्टी चोखा by पाखी
चने की सत्तू में प्याज, लहसून, हरिमिर्च, अदरक, हरा धनिया, सभी सामग्री बारीक काट कर सरसों तेल 2 spoon डाल कर मिला ले अच्छी तरह, नमक स्वादानुसार, आप इसमे नींबु के कुछ बूँद भी डाल सकते हैं, फिर आटे की लोई में भर कर इसको अपने पसंद के अनुसार आकार देकर तवे पर चारो तरफ […]
लिट्टी चोखा
मेरी बैचैनी
मेरी बैचैनी का कुछ तो हल निकलेगा
क्या मेरी गली से वो फिर कल निकलेगा
आईने सजा दूँगा मे अपनी दिवार पर
उसका अक्स रुकेगा या फिर चल निकलेगा
आंखे उनकी
आँखों में समन्दर है शराब का
क्यूँ ना उसे मयखाना कह दूँ
उसकी सादगी को लगा रहा चार चांद
उसके काजल को मैं चाँद कह दूँ
उसकी तारीफ मे शब्द ज़रा दगा कर गए
वर्ना तो मैं उसे हुस्न की क़ायनात कह दूँ
सादगी, नादां, जैसे अनजान सी दुनिया से
मैं उसे पाकीजा कोई मुरत संगमरमर कह दूँ
उसके हर कदम पर छन छन का संगति बजता है
मैं उसे फ़िजा की कोई बहार कह दूँ
सोचता हूं शब्द का अंबार लगा दूँ उसके बारे में
मैं उसे खुशी का क्यूँ ना कारोबार कह दूँ
ज़माने की जैसे सताई हुई लगती है वो मुझे
उसकी हँसी को मैं मगर कोई दवा कह दूँ
खुदा बरकरार रखे उसकी हर अदा हर नाज़
दुआ मे उसका नाम लेकर अमीन कह दूँ
तारीफ
उसकी तारीफ मे शब्द कमजोर पड जाते हैं अक्सर खुदा का अक़्स दिखता है मुझे उसके चेहरे मे
एक ग़ज़ल रूप
एक ग़ज़ल “रूप”
कुछ लोग उसके हुस्न को ताजमहल कहते हैं
हम मगर उन्हें चलती फिरती हुई ग़ज़ल कहते हैं
उसकी नीली सी निगाहें समेटे हुए अनंत कुछ
कुछ लोग आसमाँ हम उसे समंदर कहते हैं
उसकी जुल्फ खुले तो महक उठे बस्ती सारी
कुछ लोग इत्र हम उसे मगर गुलाब कहते हैं
उसकी पलकों पर बस्ते हैं बादल के अर्थ
कुछ लोग ओस हम उसे मगर मोती कहते हैं
उसकी नाक पर सजी है बन के नजर का टीका
कुछ लोग उसे नथ हम उसे मगर कोहिनूर कहते हैं
उसकी हर अदा ग़ज़ब की बाँधा है उसने सैलाब
कुछ लोग उसे दायरा हम उसे मगर काजल कहते हैं
उसकी मुस्कान अधर पर सजी है लाली बन के
कुछ लोग उसे मधु हम उसे ढली शाम कहते हैं
उसके हर शृंगार का जिक्र हमने कर दिया ग़ज़ल मे
कुछ लोग उसे आह हम उसे शब्दों में “रूप” कहते हैं
तेरे पास क्या नहीं
तेरी शतरंज पर क्या-क्या नहीं था
मुहब्बत का ही एक मोहरा नहीं था❤